Friday, 29 May 2020

2.Introduction to English




प्रिय पाठकों 
आप सभी को मेरा नमस्कार !

निश्चित तौर पर आज का युग विज्ञान और टेक्नोलॉजी का है परन्तु इससे भाषा की महत्ता कम नहीं हो जाती। सभी भाषाएं महतत्वपूर्ण हैं क्योंकि इन भाषाओँ ने ही मानव समाज को अभिव्यक्ति का शक्तिशाली साधन प्रदान किया और उनके विकास में अत्यंत ही महत्वपूर्ण योगदान दिया। मानव सभ्यता के प्रारम्भ से ही धरती के विभिन्न हिस्सों में रहने वाले विभिन्न मानव समाजों ने विभिन्न प्रकार की भाषाओं का प्रयोग अपनी आवश्यकता के अनुसार किया। शाब्दिक भाषा इन्ही विभिन्न भाषाओँ में से एक है। शाब्दिक भाषा से तात्पर्य उस भाषा से है जिसमे शब्दों के प्रयोग द्वारा विचारों को व्यक्त किया जाता है। संस्कृत, तमिल, हिंदी, मलयाली, अंग्रेजी इत्यादि शाब्दिक भाषाएं ही हैं। प्रत्येक भाषा का अपना एक नियम होता है जिसे उस भाषा का व्याकरण अथवा ग्रामर कहते हैं। जैसा की पिछले ब्लॉग में बताया जा चुका है और इस ब्लॉग के हेड टाइटल से भी स्पष्ट है कि प्रस्तुत ब्लॉग का मूल उद्देश्य अपने पाठकों की अंग्रेजी भाषा की समझ को विकसित करना है। तो आइये इस ब्लॉग के अगले हिस्से में मैं अंग्रेजी भाषा पर चर्चा शुरू करता हूँ।

किसी भी भाषा के दो महत्वपूर्ण घटक होते है: पहला भाषा के नियम (व्याकरण) और दूसरा नियमों के अनुसार शब्दों का प्रयोग। अगर मुझे इस बात को अंग्रेजी के सन्दर्भ में और सरल ढंग से कहना हो तो मैं कहूंगा कि हमें अंग्रेजी के सही प्रयोग के लिए दो महत्पूर्ण घटकों की नितांत आवश्यकता होती है: पहला अंग्रेजी व्याकरण और दूसरा अंग्रेजी शब्द भंडार। प्रस्तुत ब्लॉग इन दोनों ही घटकों पर अपने पाठकों का मार्गदर्शन करेगा।

व्याकरण 

व्याकरण सीखने का सही तरीका नियमों को रटना नहीं है। क्या कभी कोई व्यक्ति पानी में तैरना सिद्धांतों को पढ़ने मात्र से सीख सकता है ? उत्तर होगा नहीं। तैरने के लिए सिद्धांत नहीं कुशल व्यवहार की आवश्यकता होती है और व्यवहार में कुशलता सतत प्रयास से ही मिलती है। इसी प्रकार से इंग्लिश ग्रामर को किताबों को पढ़ने मात्र से नहीं सीखा जा सकता। इसे सीखने के लिए प्रारम्भ में किसी मार्गदर्शक की आवश्यकता होती है। मार्गदर्शक ऐसा होना चाहिए जो सूत्र शैली के माध्यम से आपको अंग्रेजी व्याकरण का व्यवहारिक रूप प्रदान कर सके। सूत्र शैली का विशेष लाभ यह आपको बहुत ही कम समय में अधिक ज्ञान दे   सकता है।  उदाहरण के लिए जिन विषयों को सामान्यत: एक साल में पूरा किया जाता है उन्ही विषयों को सूत्र शैली के माध्यम से  बहुत प्रभावी ढंग से एवं अच्छे परिणाम के साथ मात्र एक महीने में पूरा किया जा सकता है। अंग्रेजी भाषा में कुछ मुख्य सूत्र हैं और इन्ही सूत्रों के सरल एवं सयुंक्त रूपों का प्रयोग करके वाक्य रचना की जाती है। मैं आपको अंग्रेजी अनुप्रयोग से अंग्रेजी व्याकरण सिखाऊंगा न कि व्याकरण से प्रयोग जैसा अक्सर देखा जाता है। प्रारम्भ में नियमों पर चर्चा बहुत सीमित होगी और बाद में आप स्वतः ही नियमों को समझ चुके होंगे। जहाँ तक शब्द-भंडार का प्रश्न है बीच-बीच में मैं उनपर चर्चा करता रहूँगा।

अगले ब्लॉग में मैं आपको अंग्रेजी के लिए आवश्यक उन सूत्रो से परिचित कराऊंगा जिनकी सहायता से अंग्रेजी भाषा का बोलना एवं लिखना संभव हो पाता  है।

अगले ब्लॉग में आपका इंतज़ार ख़त्म हो जाएगा और हम अंग्रेजी सीखने की नाँव में प्रत्यक्ष रुप से सवार हो चुके होंगे। 


 तब तक के लिए आप सभी को नमस्कार।









Thursday, 28 May 2020

1.Blogger's Introduction


प्रिय पाठकों
नमस्कार। 

प्रस्तुत ब्लॉग का मुख्य उद्देश्य अपने उन पाठकों को सामान्य अंग्रेज़ी सिखाना है जो कमजोर अंग्रेजी के कारण विभिन्न प्रतिओगी परीक्षाओं में असफल हो जाते हैं। परन्तु इससे पूर्व ब्लॉगर अपने पाठको के सम्मुख अपना संक्षिप्त परिचय रखने की अनुमति चाहता है। 

मेरा नाम योगेश है और मैं दिल्ली विश्विद्यालय के अंग्रेज़ी विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर हूँ. वर्ष 2014 में दिल्ली यूनिवर्सिटी ज्वाइन करने के पहले मैं अंडमान-निकोबार के पोर्ट ब्लेयर में स्थित जवाहरलाल नेहरू गवर्नमेंट डिग्री कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर कार्यरत था। वर्ष 2010  में संघ लोक सेवा आयोग दिल्ली के द्वारा मेरा चयन उक्त कॉलेज के लिए हुआ था। इससे पूर्व मैं वर्ष 2006  से 2010 तक बैसवारा इण्टर  कॉलेज, लालगंज, रायबरेली, उत्तर प्रदेश में अंग्रेज़ी प्रवक्ता के पद पर कार्यरत था। इस कॉलेज के लिए मेरा चयन वर्ष 2005 में उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड एलनगंज इलाहबाद के द्वारा किया गया था। माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड के द्वारा अंतिम चयन से लेकर  बैसवारा इण्टर  कॉलेज ज्वाइन करने का सफर बहुत ही मुश्किल और कांटो से भरा था। इसपर मैं चर्चा फिर कभी करूंगा। इन सब के बीच वर्ष 2006 में उत्तराखंड लोक सेवा आयोग, हरिद्वार, वर्ष 2011 में उत्तराखंड ओपन यूनिवर्सिटी, नैनीताल एवं वर्ष 2012 में छतीसगढ़ लोक सेवा आयोग, रायपुर के द्वारा प्रवक्ता एवं असिस्टेंट प्रोफेसर के पदों पर मेरा चयन हुआ था परन्तु विभिन्न कारणों  से मैं इन चयनों को अपनी सेवायें न दे सका। यह तो हुआ मेरे अध्यापन एवं प्रोफेशनल जीवन का एक संक्षिप्त परिचय।

जहाँ तक मेरी शिक्षा का प्रश्न है तो मैं बताना चाहूंगा कि मेरी संपूर्ण शिक्षा इलाहाबाद में हुई। मैं हिंदी माध्यम का छात्र रहा। मैंने  प्राथमिक शिक्षा शिशु संगम, कीडगंज, इलाहाबाद से, दसवीं एवं बारहवीं जमुना क्रिस्चियन इंटर कॉलेज, इलाहाबाद, बैचलर ऑफ़ आर्ट्स ईविंग क्रिस्चियन कॉलेज, इलाहाबाद एवं परास्नातक तथा पीएचडी इलाहाबाद विश्वविद्यालय से किया।  मैंने इंग्लिश में एम ए किया और फिर डिपार्टमेंट ऑफ़ इंग्लिश के प्रोफेसर लक्ष्मी राज शर्मा के मार्गदर्शन में शेक्सपियर पर पीएचडी किया। अब मैं आपके साथ यह भी साझा करना चाहूंगा कि शुरू में मुझे अंग्रेजी से बहुत डर लगता था। ग्यारहवीं के हाफ इयरली होम एग्जाम में अंग्रेज़ी में मेरे बहुत ही ख़राब मार्क्स आये थे। मुझे 100 में 31 नंबर मिले थे। मैथ में 94 और फिजिक्स में 76  ऐसे में मेरे पिता जी ने मेरे मामा जी से सलाह कर मुझे अंग्रेजी पढ़ने के लिए अंग्रेजी के एक अध्यापक के पास भेजा। आज उनका भौतिक शरीर इस दुनिया में नहीं हैं उन्हें लोग नरेंद्र नाथ पांडेय के नाम से जानते थे स्व नरेंद्र नाथ पांडेय जी ही वह महान व्यक्ति हैं जिन्होंने मात्र एक महीने में मुझे अंग्रेज़ी के रीढ़ की हड्डी दे दी। मेरी सफलता का श्रेय सर्वप्रथम मेरे आराध्य गुरु स्व नरेंद्र नाथ पांडेय जी को जाता है। इसके बाद मैं प्रोफेसर लक्ष्मी राज शर्मा के विद्वतापूर्ण मार्गदर्शन एवं उनके आशीर्वाद का ऋणी हूँ। 

आज तो यह हुआ मेरे बारे में एक सामान्य परिचय. अगले ब्लॉग में मैं अंग्रेजी पर चर्चा करूंगा।

तब तक के लिए नमस्कार।